tag:blogger.com,1999:blog-67825954792793148842023-11-15T10:55:00.796-08:00Gyan ka BlogDharmendra Kumarhttp://www.blogger.com/profile/05446076950479072228noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-6782595479279314884.post-52965387425599714102017-07-01T21:44:00.003-07:002017-07-01T21:44:46.947-07:00भगवान राम की मौत कैसे हुई ??<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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इस दुनिया में आने वाला इंसान अपने जन्म से पहले ही अपनी मृत्यु की तारीख यम लोक में निश्चित करके आता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि जो आत्मा सांसारिक सुख भोगने के लिए संसार में आई है, वह एक दिन वापस जरूर जाएगी, यानी कि इंसान को एक दिन मरना ही है। लेकिन इंसान और ईश्वर के भीतर एक बड़ा अंतर है। इसलिए हम भगवान के लिए मरना शब्द कभी इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि इसके स्थान पर उनका इस ‘दुनिया से चले जाना’ या ‘लोप हो जाना’, इस तरह के शब्दों का उपयोग करते हैं।</div>
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हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु के महान अवतार प्रभु राम के इस दुनिया से चले जाने की कहानी काफी रोचक है। हर एक हिन्दू यह जानना चाहता है कि आखिरकार हिन्दू धर्म के महान राजा भगवान राम किस तरह से दूसरे लोक में चले गए। वह धरती लोक से विष्णु लोक में कैसे गए इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। हिन्दू धर्म के प्रमुख तीन देवता - ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश में से भगवान विष्णु के कई अवतारों ने विभिन्न युग में जन्म लिया। यह अवतार भगवान विष्णु द्वारा संसार की भलाई के लिए लिए गए थे। भगवान विष्णु द्वारा कुल 10 अवतारों की रचना की गई थी, जिसमें से भगवान राम सातवें अवतार माने जाते हैं। यह अवतार भगवान विष्णु के सभी अवतारों में से सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और पूजनीय माना जाता है।</div>
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प्रभु राम के बारे में महर्षि वाल्मीकि द्वारा अनेक कथाएं लिखी गई हैं, जिन्हें पढ़कर कलयुग के मनुष्य को श्रीराम के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। वाल्मीकि के अलावा प्रसिद्ध महाकवि तुलसीदास ने भी अनगिनत कविताओं द्वारा कलियुग के मानव को श्री राम की तस्वीर जाहिर करने की कोशिश की है। भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम तक, सभी जगहों पर भगवान राम के मंदिर स्थापित किये गए हैं। इनमें से कई मंदिर ऐतिहासिक दृष्टि से बनाए गए हैं। भगवान श्री राम की मुक्ति से पूर्व यदि हम उनके जीवनकाल पर नजर डालें तो प्रभु राम ने पृथ्वी पर 10 हजार से भी ज्यादा वर्षों तक राज किया है। अपने इस लम्बे परिमित समय में भगवान राम ने ऐसे कई महान कार्य किए हैं, जिन्होंने हिन्दू धर्म को एक गौरवमयी इतिहास प्रदान किया है। प्रभु राम अयोध्या के राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र थे, जिनका विवाह जनक की राजकुमारी सीता से हुआ था। अपनी पत्नी की रक्षा करने के लिए भगवान राम ने राक्षसों के राजा रावण का वध भी किया था।</div>
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फिर कैसे भगवान राम इस दुनिया से लोप हो गए? वह क्या कारण था जो उन्हें अपने परिवार को छोड़ विष्णु लोक वापस पधारना पड़ा। पद्म पुराण में दर्ज एक कथा के अनुसार, एक दिन एक वृद्ध संत भगवान राम के दरबार में पहुंचे और उनसे अकेले में चर्चा करने के लिए निवेदन किया। उस संत की पुकार सुनते हुए प्रभु राम उन्हें एक कक्ष में ले गए और द्वार पर अपने छोटे भाई लक्ष्मण को खड़ा किया और कहा कि यदि उनके और उस संत की चर्चा को किसी ने भंग करने की कोशिश की तो उसे मृत्युदंड प्राप्त होगा। लक्ष्मण ने अपने ज्येष्ठ भ्राता की आज्ञा का पालन करते हुए दोनों को उस कमरे में एकांत में छोड़ दिया और खुद बाहर पहरा देने लगे। वह वृद्ध संत कोई और नहीं बल्कि विष्णु लोक से भेजे गए काल देव थे जिन्हें प्रभु राम को यह बताने भेजा गया था कि उनका धरती पर जीवन पूरा हो चुका है और अब उन्हें अपने लोक वापस लौटना होगा।</div>
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अभी उस संत और श्रीराम के बीच चर्चा चल ही रही थी कि अचानक द्वार पर ऋषि दुर्वासा आ गए। उन्होंने लक्ष्मण से भगवान राम से बात करने के लिए कक्ष के भीतर जाने के लिए निवेदन किया लेकिन श्रीराम की आज्ञा का पालन करते हुए लक्ष्मण ने उन्हें ऐसा करने से मना किया। ऋषि दुर्वासा हमेशा से ही अपने अत्यंत क्रोध के लिए जाने जाते हैं, जिसका खामियाजा हर किसी को भुगतना पड़ता है, यहां तक कि स्वयं श्रीराम को भी। लक्ष्मण के बार-बार मना करने पर भी ऋषि दुर्वासा अपनी बात से पीछे ना हटे और अंत में लक्ष्मण को श्री राम को श्राप देने की चेतावनी दे दी। अब लक्ष्मण की चिंता और भी बढ़ गई। वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिरकार अपने भाई की आज्ञा का पालन करें या फिर उन्हें श्राप मिलने से बचाएं। लक्ष्मण हमेशा से अपने ज्येष्ठ भाई श्री राम की आज्ञा का पालन करते आए थे। पूरे रामायण काल में वे एक क्षण भी श्रीराम से दूर नहीं रहे। यहां तक कि वनवास के समय भी वे अपने भाई और सीता के साथ ही रहे थे और अंत में उन्हें साथ लेकर ही अयोध्या वापस लौटे थे। ऋषि दुर्वासा द्वारा भगवान राम को श्राप देने जैसी चेतावनी सुनकर लक्ष्मण काफी भयभीत हो गए और फिर उन्होंने एक कठोर फैसला लिया।</div>
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लक्ष्मण कभी नहीं चाहते थे कि उनके कारण उनके भाई को कोई किसी भी प्रकार की हानि पहुंचा सके। इसलिए उन्होंने अपनी बलि देने का फैसला किया। उन्होंने सोचा यदि वे ऋषि दुर्वासा को भीतर नहीं जाने देंगे तो उनके भाई को श्राप का सामना करना पड़ेगा, लेकिन यदि वे श्रीराम की आज्ञा के विरुद्ध जाएंगे तो उन्हें मृत्यु दंड भुगतना होगा, यही लक्ष्मण ने सही समझा। वे आगे बढ़े और कमरे के भीतर चले गए। लक्ष्मण को चर्चा में बाधा डालते देख श्रीराम ही धर्म संकट में पड़ गए। अब एक तरफ अपने फैसले से मजबूर थे और दूसरी तरफ भाई के प्यार से निस्सहाय थे। उस समय श्रीराम ने अपने भाई को मृत्यु दंड देने के स्थान पर राज्य एवं देश से बाहर निकल जाने को कहा। उस युग में देश निकाला मिलना मृत्यु दंड के बराबर ही माना जाता था।</div>
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लेकिन लक्ष्मण जो कभी अपने भाई राम के बिना एक क्षण भी नहीं रह सकते थे उन्होंने इस दुनिया को ही छोड़ने का निर्णय लिया। वे सरयू नदी के पास गए और संसार से मुक्ति पाने की इच्छा रखते हुए वे नदी के भीतर चले गए। इस तरह लक्ष्मण के जीवन का अंत हो गया और वे पृथ्वी लोक से दूसरे लोक में चले गए। लक्ष्मण के सरयू नदी के अंदर जाते ही वह अनंत शेष के अवतार में बदल गए और विष्णु लोक चले गए। अपने भाई के चले जाने से श्री राम काफी उदास हो गए। जिस तरह राम के बिना लक्ष्मण नहीं, ठीक उसी तरह लक्ष्मण के बिना राम का जीना भी प्रभु राम को उचित ना लगा। उन्होंने भी इस लोक से चले जाने का विचार बनाया। तब प्रभु राम ने अपना राज-पाट और पद अपने पुत्रों के साथ अपने भाई के पुत्रों को सौंप दिया और सरयू नदी की ओर चल दिए।</div>
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वहां पहुंचकर श्री राम सरयू नदी के बिलकुल आंतरिक भूभाग तक चले गए और अचानक गायब हो गए। फिर कुछ देर बाद नदी के भीतर से भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने अपने भक्तों को दर्शन दिए। इस प्रकार से श्री राम ने भी अपना मानवीय रूप त्याग कर अपने वास्तविक स्वरूप विष्णु का रूप धारण किया और वैकुंठ धाम की ओर प्रस्थान किया। भगवान राम का पृथ्वी लोक से विष्णु लोक में जाना कठिन हो जाता यदि भगवान हनुमान को इस बात की आशंका हो जाती। भगवान हनुमान जो हर समय श्री राम की सेवा और रक्षा की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाते थे, यदि उन्हें इस बात का अंदाजा होता कि विष्णु लोक से श्री राम को लेने काल देव आने वाले हैं तो वे उन्हें अयोध्या में कदम भी ना रखने देते, लेकिन उसके पीछे भी एक कहानी छिपी है।</div>
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जिस दिन काल देव को अयोध्या में आना था उस दिन श्री राम ने भगवान हनुमान को मुख्य द्वार से दूर रखने का एक तरीका निकाला। उन्होंने अपनी अंगूठी महल के फर्श में आई एक दरार में डाल दी और हनुमान को उसे बाहर निकालने का आदेश दिया। उस अंगूठी को निकालने के लिए भगवान हनुमान ने स्वयं भी उस दरार जितना आकार ले लिया और उसे खोजने में लग गए। जब हनुमान उस दरार के भीतर गए तो उन्हें समझ में आया कि यह कोई दरार नहीं बल्कि सुरंग है जो नाग-लोक की ओर जाती है। वहां जाकर वे नागों के राजा वासुकि से मिले। वासुकि हनुमान को नाग-लोक के मध्य में ले गए और अंगूठियों से भरा एक विशाल पहाड़ दिखाते हुए कहा कि यहां आपको आपकी अंगूठी मिल जाएगी। उस पर्वत को देख हनुमान कुछ परेशान हो गए और सोचने लगे कि इस विशाल ढेर में से श्री राम की अंगूठी खोजना तो भूसे के ढेर से सूई निकालने के समान है।</div>
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लेकिन जैसे ही उन्होंने पहली अंगूठी उठाई तो वह श्री राम की ही थी। लेकिन अचंभा तब हुआ जब दूसरी अंगूठी उठाई, क्योंकि वह भी भगवान राम की ही थी। यह देख भगवान हनुमान को एक पल के लिए समझ ना आया कि उनके साथ क्या हो रहा है। इसे देख वासुकि मुस्कुराए और उन्हें कुछ समझाने लगे। वे बोले कि पृथ्वी लोक एक ऐसा लोक है जहां जो भी आता है उसे एक दिन वापस लौटना ही होता है। उसके वापस जाने का साधन कुछ भी हो सकता है। ठीक इसी तरह श्रीराम भी पृथ्वी लोक को छोड़ एक दिन विष्णु लोक वापस आवश्य जाएंगे। वासुकि की यह बात सुनकर भगवान हनुमान को सारी बातें समझ में आने लगीं। उनका अंगूठी ढूंढ़ने के लिए आना और फिर नाग-लोक पहुंचना, यह सब श्री राम का ही फैसला था।</div>
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वासुकि की बताई बात के अनुसार उन्हें यह समझ आया कि उनका नाग-लोक में आना केवल श्री राम द्वारा उन्हें उनके कर्तव्य से भटकाना था ताकि काल देव अयोध्या में प्रवेश कर सकें और श्री राम को उनके जीवनकाल के समाप्त होने की सूचना दे सकें। अब जब वे अयोध्या वापस लौटेंगे तो श्रीराम नहीं होंगे और श्रीराम नहीं तो दुनिया भी कुछ नहीं है। हनुमान जान गए कि उनका नाग लोक में प्रवेश और अंगूठियों के पर्वत से साक्षात, कोई आकस्मिक घटना नहीं थी। यह राम का उनको समझाने का मार्ग था कि मृत्यु को आने से रोका नहीं जा सकेगा। राम मृत्यु को प्राप्त होंगे। संसार समाप्त होगा। लेकिन हमेशा की तरह, संसार पुनः बनता है और राम भी पुनः जन्म लेंगे।</div>
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Dharmendra Kumarhttp://www.blogger.com/profile/05446076950479072228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6782595479279314884.post-62359892084567039252017-07-01T21:43:00.002-07:002017-07-01T21:43:38.639-07:00SCINCE OF HUMAN BODY<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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1. मूलाधार चक्र :<br />
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यह शरीर का पहला चक्र है।<br />
गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला यह "आधार चक्र" है।99.9% लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती हैऔर वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं।जिनके जीवन में भोग,काम और निद्रा की प्रधानता है,उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आस पास एकत्रित रहती है।<br />
मंत्र : "लं"<br />
चक्र जगाने की विधि:-मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है.!<br />
इसीलिए भोग, निद्रा और काम पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है I यम.और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना।<br />
प्रभाव : इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है।<br />
सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता,निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।<br />
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2. स्वाधिष्ठान चक्र -<br />
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यह वह चक्र है,जो लिंग मूल से चार अंगुल ऊपर स्थित है,<br />
जिसकी छ: पंखुरियां हैं।<br />
अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है,तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी।यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत<br />
हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगाऔर हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे।<br />
मंत्र : "वं"<br />
कैसे जाग्रत करें :जीवन में मनोरंजन जरूरी है,लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं।मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी में धकेलता है फिल्म सच्ची नहीं होती.लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आपके बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है।नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते।<br />
प्रभाव :इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद,<br />
अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है।<br />
सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हो,तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।<br />
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3. मणिपुर चक्र :<br />
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नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अंतर्गत "मणिपुर" नामक<br />
तीसरा चक्र है,जो दस कमल पंखुरियों से युक्त है।जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित हैउसे काम करने की धुन-सी रहती है।ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं।ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।<br />
मंत्र : "रं"<br />
कैसे जाग्रत करें :आपके कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएंगे।पेट से श्वास लें।<br />
प्रभाव :इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली,लज्जा, भय,घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं।यह चक्र मूल रूप सेआत्म शक्ति प्रदान करता है।सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान होना जरूरी है।आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं।आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।<br />
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4. अनाहत चक्र-<br />
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हृदय स्थल में स्थित स्वर्णिम वर्ण का द्वादश दल कमल<br />
की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से सुशोभित चक्र ही "अनाहत चक्र" है।अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है,तो आप एक सृजन शील व्यक्ति होंगे।हर क्षणआप कुछ न कुछ नया रचने की सोचते हैं।आप चित्रकार,कवि, कहानीकार, इंजीनियरआदि हो सकते हैं।<br />
मंत्र : "यं"<br />
कैसे जाग्रत करें :हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने सेयह चक्र जाग्रत होने लगता है।खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यहअभ्यास से जाग्रत होने लगता है और "सुषुम्ना"इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है।<br />
प्रभाव :इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क,<br />
चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकारसमाप्त हो जाते हैं।इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति के भीतर प्रेम और<br />
संवेदना का जागरण होता है।<br />
इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान स्वत:ही प्रकट होने लगता है।व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त,सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता हैं।ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।<br />
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5. विशुद्ध चक्र-<br />
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कंठ में सरस्वती का स्थान है,<br />
जहां "विशुद्ध चक्र" है और जो सोलहपंखुरियों वाला है सामान्य तौर पर यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है,तो आप अति शक्ति शाली होंगे।<br />
मंत्र : "हं"<br />
कैसे जाग्रत करें :कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।<br />
प्रभाव :इसके जाग्रत होने कर सोलह कलाओं और सोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है।इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता हैवहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।<br />
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6. आज्ञाचक्र <br />
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भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में "आज्ञा-चक्र" है।<br />
सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय है,तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और<br />
तेज दिमाग का बन जाता है<br />
लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। "बौद्धिक सिद्धि" कहते हैं।<br />
मंत्र : "ऊं"<br />
कैसे जाग्रत करें :भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।<br />
प्रभाव :यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं।इस "आज्ञा चक्र" का जागरण होने से ये सभी<br />
शक्तियां जाग पड़ती हैं,और व्यक्ति एक सिद्धपुरुष बन जाता है।<br />
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7. सहस्रार चक्र :<br />
■■■■■■■■■■■■■■■■■<br />
"सहस्रार" की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात जहां चोटी रखते हैं।यदि व्यक्ति यम, नियम का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह<br />
आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है।ऐसे व्यक्ति को संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई<br />
मतलब नहीं रहता है।<br />
कैसे जाग्रत करें :"मूलाधार" से होते हुए ही "सहस्रार" तक पहुंचा जा सकता है।लगातार ध्यान करते रहने से यह "चक्र" जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त कर<br />
लेता है।<br />
प्रभाव :शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीयऔर जैवीय विद्युत का संग्रह है।<br />
यही "मोक्ष" का द्वार है ।</div>
Dharmendra Kumarhttp://www.blogger.com/profile/05446076950479072228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6782595479279314884.post-69345118509285011262017-07-01T21:42:00.002-07:002017-07-01T21:42:42.991-07:00तुलसी कौन थी?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<b>तुलसी(पौधा)</b> पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.</div>
<div style="text-align: justify;">
वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी.</div>
<div style="text-align: justify;">
एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा -</div>
<div style="text-align: justify;">
स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प</div>
<div style="text-align: justify;">
नही छोडूगी। जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये।</div>
<div style="text-align: justify;">
सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता ।</div>
<div style="text-align: justify;">
फिर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।</div>
<div style="text-align: justify;">
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे</div>
<div style="text-align: justify;">
ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?</div>
<div style="text-align: justify;">
उन्होंने पूँछा - आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये।</div>
<div style="text-align: justify;">
सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्रार्थना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे</div>
<div style="text-align: justify;">
सती हो गयी।</div>
<div style="text-align: justify;">
उनकी राख से एक पौधा निकला तब</div>
<div style="text-align: justify;">
भगवान विष्णु जी ने कहा –आज से</div>
<div style="text-align: justify;">
इनका नाम तुलसी है, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में</div>
<div style="text-align: justify;">
बिना तुलसी जी के भोग</div>
<div style="text-align: justify;">
स्वीकार नहीं करुगा। तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे। और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में</div>
<div style="text-align: justify;">
किया जाता है.देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है !</div>
</div>
Dharmendra Kumarhttp://www.blogger.com/profile/05446076950479072228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6782595479279314884.post-56994236730777528022017-06-25T06:43:00.002-07:002017-06-25T06:43:13.784-07:00टिकट कहाँ है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
" टिकट कहाँ है ? " -- टी सी ने बर्थ के नीचे छिपी लगभग तेरह - चौदह साल की लडकी से पूछा ।<br />
" नहीं है साहब।"काँपती हुई हाथ जोड़े लडकी बोली।<br />
"तो गाड़ी से उतरो।" टी सी ने कहा ।<br />
इसका टिकट मैं दे रहीं हूँ ।<br />
............पीछे से ऊषा भट्टाचार्य की आवाज आई जो पेशे से प्रोफेसर थी ।<br />
"तुम्हें कहाँ जाना है ?" लड़कीसे पूछा<br />
" पता नही मैम ! "<br />
" तब मेरे साथ चल बैंगलोर तक ! "<br />
" तुम्हारा नाम क्या है ? "<br />
" चित्रा ! "<br />
बैंगलोर पहुँच कर ऊषाजीने चित्रा को अपनी ऐक पहचान के स्वंयसेवी संस्थान को सौंप दिया ।<br />
जल्द ही ऊषा जी का ट्रांसफर दिल्ली होने की वजह से चित्रा से कभी कभार फोन पर बात हो जाया करती थी ।<br />
करीब बीस साल बाद ऊषाजी को एक लेक्चर के लिए सेन फ्रांसिस्को ( अमरीका) बुलाया गया ।<br />
लेक्चर के बाद जब वह होटल का बिल देने रिसेप्सन पर गई तो पता चला पीछे खड़ी एक खूबसूरत दंपत्ति ने बिल भर दिया था ।<br />
"तुमने मेरा बिल क्यों भरा ? ? "<br />
" मैम साहब, यह बम्बई से बैंगलोर तक के रेल टिकट के सामने कुछ नहीं है । "<br />
"अरे चित्रा ! ! ? ? ? . . . .<br />
( चित्रा कोई और नहीं इंफोसिस फाउंडेशन की चेयरमैन सुधा मुर्ति जी थी।)<br />
यह उन्ही की लिखी पुस्तक "द डे आई स्टाॅप्ड ड्रिंकिंग " से लिया गया कुछ अंश )<br />
देखा आपने!............<br />
कभी आपके द्वारा भी की गई सहायता किसी की जिन्दगी बदल सकती है।<br />
सहायता करने की समर्थता प्रदान करें इन्हीं मनोभावों और आप की प्यारी सी मुस्कान😊😊की अपेक्षा<br />
के साथ<br />
💐 🙏💐<br />
<div>
<br /></div>
</div>
Dharmendra Kumarhttp://www.blogger.com/profile/05446076950479072228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6782595479279314884.post-565130150486834212017-06-25T06:40:00.000-07:002017-06-25T06:40:50.761-07:00 मंदिर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक पाँच छ: साल का मासूम सा बच्चा अपनी छोटी बहन को लेकर मंदिर के एक तरफ कोने में बैठा हाथ जोडकर भगवान से न जाने क्या मांग रहा था ।<br />
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कपड़े में मैल लगा हुआ था मगर निहायत साफ, उसके नन्हे नन्हे से गाल आँसूओं से भीग चुके थे ।<br />
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बहुत लोग उसकी तरफ आकर्षित थे और वह बिल्कुल अनजान अपने भगवान से बातों में लगा हुआ था ।<br />
<br />
जैसे ही वह उठा एक अजनबी ने बढ़ के उसका नन्हा सा हाथ पकड़ा और पूछा : -<br />
"क्या मांगा भगवान से"<br />
उसने कहा : -<br />
"मेरे पापा मर गए हैं उनके लिए स्वर्ग,<br />
मेरी माँ रोती रहती है उनके लिए सब्र,<br />
मेरी बहन माँ से कपडे सामान मांगती है उसके लिए पैसे"..<br />
<br />
"तुम स्कूल जाते हो"..?<br />
अजनबी का सवाल स्वाभाविक सा सवाल था ।<br />
<br />
हां जाता हूं, उसने कहा ।<br />
<br />
किस क्लास में पढ़ते हो ? अजनबी ने पूछा<br />
<br />
नहीं अंकल पढ़ने नहीं जाता, मां चने बना देती है वह स्कूल के बच्चों को बेचता हूँ ।<br />
बहुत सारे बच्चे मुझसे चने खरीदते हैं, हमारा यही काम धंधा है ।<br />
बच्चे का एक एक शब्द मेरी रूह में उतर रहा था ।<br />
<br />
"तुम्हारा कोई रिश्तेदार"<br />
न चाहते हुए भी अजनबी बच्चे से पूछ बैठा ।<br />
<br />
पता नहीं, माँ कहती है गरीब का कोई रिश्तेदार नहीं होता,<br />
माँ झूठ नहीं बोलती,<br />
पर अंकल,<br />
मुझे लगता है मेरी माँ कभी कभी झूठ बोलती है,<br />
जब हम खाना खाते हैं हमें देखती रहती है ।<br />
जब कहता हूँ<br />
माँ तुम भी खाओ, तो कहती है मैने खा लिया था, उस समय लगता है झूठ बोलती है ।<br />
<br />
बेटा अगर तुम्हारे घर का खर्च मिल जाय तो पढाई करोगे ?<br />
"बिल्कुलु नहीं"<br />
<br />
"क्यों"<br />
पढ़ाई करने वाले, गरीबों से नफरत करते हैं अंकल,<br />
हमें किसी पढ़े हुए ने कभी नहीं पूछा - पास से गुजर जाते हैं ।<br />
<br />
अजनबी हैरान भी था और शर्मिंदा भी ।<br />
<br />
फिर उसने कहा<br />
"हर दिन इसी इस मंदिर में आता हूँ,<br />
कभी किसी ने नहीं पूछा - यहाँ सब आने वाले मेरे पिताजी को जानते थे - मगर हमें कोई नहीं जानता ।<br />
<br />
"बच्चा जोर-जोर से रोने लगा"<br />
<br />
अंकल जब बाप मर जाता है तो सब अजनबी क्यों हो जाते हैं ?<br />
<br />
मेरे पास इसका कोई जवाब नही था...<br />
<br />
ऐसे कितने मासूम होंगे जो हसरतों से घायल हैं ।<br />
बस एक कोशिश कीजिये और अपने आसपास ऐसे ज़रूरतमंद यतीमों, बेसहाराओ को ढूंढिये और उनकी मदद किजिए .........................<br />
<br />
मंदिर मे सीमेंट या अन्न की बोरी देने से पहले अपने आस - पास किसी गरीब को देख लेना शायद उसको आटे की बोरी की ज्यादा जरुरत हो ।<br />
<br />
आपको पसंद आऐ तो सब काम छोडके ये मेसेज कम से कम एक या दो गुरुप मे जरुर डाले ।<br />
कहीं गुरुप मे ऐसा देवता ईन्सान मिल जाऐ ।<br />
कहीं एसे बच्चो को अपना भगवान मील जाए ।<br />
कुछ समय के लिए एक गरीब बेसहारा की आँख मे आँख डालकर देखे, आपको क्या महसूस होता है ।</div>
Dharmendra Kumarhttp://www.blogger.com/profile/05446076950479072228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6782595479279314884.post-84738240806024537142017-06-25T06:38:00.001-07:002017-06-25T06:38:34.858-07:00संघर्ष और सफलता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पिकासो (Picasso) स्पेन में जन्मे एक अति प्रसिद्ध चित्रकार थे। उनकी पेंटिंग्स दुनिया भर में करोड़ों और अरबों रुपयों में बिका करती थीं...!!<br />
<br />
एक दिन रास्ते से गुजरते समय एक महिला की नजर पिकासो पर पड़ी और संयोग से उस महिला ने उन्हें पहचान लिया। वह दौड़ी हुई उनके पास आयी और बोली, 'सर, मैं आपकी बहुत बड़ी फैन हूँ। आपकी पेंटिंग्स मुझे बहुत ज्यादा पसंद हैं। क्या आप मेरे लिए भी एक पेंटिंग बनायेंगे...!!?'<br />
<br />
पिकासो हँसते हुए बोले, 'मैं यहाँ खाली हाथ हूँ। मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं फिर कभी आपके लिए एक पेंटिंग बना दूंगा..!!'<br />
<br />
लेकिन उस महिला ने भी जिद पकड़ ली, 'मुझे अभी एक पेंटिंग बना दीजिये, बाद में पता नहीं मैं आपसे मिल पाऊँगी या नहीं।'<br />
<br />
पिकासो ने जेब से एक छोटा सा कागज निकाला और अपने पेन से उसपर कुछ बनाने लगे। करीब 10 सेकेण्ड के अंदर पिकासो ने पेंटिंग बनायीं और कहा, 'यह लो, यह मिलियन डॉलर की पेंटिंग है।'<br />
<br />
महिला को बड़ा अजीब लगा कि पिकासो ने बस 10 सेकेण्ड में जल्दी से एक काम चलाऊ पेंटिंग बना दी है और बोल रहे हैं कि मिलियन डॉलर की पेंटिग है। उसने वह पेंटिंग ली और बिना कुछ बोले अपने घर आ गयी..!!<br />
<br />
उसे लगा पिकासो उसको पागल बना रहा है। वह बाजार गयी और उस पेंटिंग की कीमत पता की। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह पेंटिंग वास्तव में मिलियन डॉलर की थी...!!<br />
<br />
वह भागी-भागी एक बार फिर पिकासो के पास आयी और बोली, 'सर आपने बिलकुल सही कहा था। यह तो मिलियन डॉलर की ही पेंटिंग है।'<br />
<br />
पिकासो ने हँसते हुए कहा,'मैंने तो आपसे पहले ही कहा था।'<br />
<br />
वह महिला बोली, 'सर, आप मुझे अपनी स्टूडेंट बना लीजिये और मुझे भी पेंटिंग बनानी सिखा दीजिये। जैसे आपने 10 सेकेण्ड में मिलियन डॉलर की पेंटिंग बना दी, वैसे ही मैं भी 10 सेकेण्ड में न सही, 10 मिनट में ही अच्छी पेंटिंग बना सकूँ, मुझे ऐसा बना दीजिये।'<br />
<br />
पिकासो ने हँसते हुए कहा, 'यह पेंटिंग, जो मैंने 10 सेकेण्ड में बनायी है...<br />
इसे सीखने में मुझे 30 साल का समय लगा है। मैंने अपने जीवन के 30 साल सीखने में दिए हैं..!! तुम भी दो, सीख जाओगी..!!<br />
<br />
वह महिला अवाक् और निःशब्द होकर पिकासो को देखती रह गयी...!!<br />
<br />
दोस्तो, जब हम दूसरों को सफल होता देखते हैं, तो हमें यह सब बड़ा आसान लगता है...!!<br />
<br />
हम कहते हैं, यार, यह इंसान तो बड़ी जल्दी और बड़ी आसानी से सफल हो गया....!!!<br />
<br />
लेकिन मेरे दोस्त,<br />
उस एक सफलता के पीछे कितने वर्षों की मेहनत छिपी है, यह कोई नहीं देख पाता....!!!<br />
<br />
सफलता तो बड़ी आसानी से मिल जाती है, शर्त यह है कि सफलता की तैयारी में अपना जीवन कुर्बान करना होता है...!!<br />
<br />
जो खुद को तपा कर, संघर्ष कर अनुभव हासिल करता है, वह कामयाब हो जाता है लेकिन दूसरों को लगता है कि वह कितनी आसानी से सफल हो गया...!!<br />
<br />
मेरे दोस्त, परीक्षा तो केवल 3 घंटे की होती है,<br />
<br />
लेकिन उन 3 घण्टों के लिए पूरे साल तैयारी करनी पड़ती है तो फिर आप रातों-रात सफल होने का सपना कैसे देख सकते हो...!!?<br />
<br />
सफलता अनुभव और संघर्ष मांगती है और, अगर आप देने को तैयार हैं, तो आपको आगे जाने से कोई नहीं रोक सकता....!!!<br />
<br />
चलता रह पथ पर,<br />
चलने में माहिर बन जा...!!<br />
या तो मंजिल मिल जाएगी,<br />
या<br />
अच्छा मुसाफ़िर बन जाएगा....!!!</div>
Dharmendra Kumarhttp://www.blogger.com/profile/05446076950479072228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6782595479279314884.post-8885355985574839572017-06-25T06:36:00.001-07:002017-06-25T06:36:02.347-07:00बूढ़ा पिता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
किसी गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति अपने बेटे और बहु के साथ रहता था । परिवार सुखी संपन्न था किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी ।<br />
.<br />
बूढ़ा बाप जो किसी समय अच्छा खासा नौजवान था आज बुढ़ापे से हार गया था, चलते समय लड़खड़ाता था लाठी की जरुरत पड़ने लगी, चेहरा झुर्रियों से भर चूका था बस अपना जीवन किसी तरह व्यतीत कर रहा था।<br />
.<br />
घर में एक चीज़ अच्छी थी कि शाम को खाना खाते समय पूरा परिवार एक साथ टेबल पर बैठ कर खाना खाता था ।<br />
.<br />
एक दिन ऐसे ही शाम को जब सारे लोग खाना खाने बैठे । बेटा ऑफिस से आया था भूख ज्यादा थी सो जल्दी से खाना खाने बैठ गया और साथ में बहु और उसका एक बेटा भी खाने लगे ।<br />
.<br />
बूढ़े हाथ जैसे ही थाली उठाने को हुए थाली हाथ से छिटक गयी थोड़ी दाल टेबल पे गिर गयी ।<br />
.<br />
बहु बेटे ने घृणा द्रष्टि से पिता की ओर देखा और फिर से अपना खाने में लग गए।<br />
.<br />
बूढ़े पिता ने जैसे ही अपने हिलते हाथों से खाना खाना शुरू किया तो खाना कभी कपड़ों पे गिरता कभी जमीन पर ।<br />
.<br />
बहु चिढ़ते हुए कहा – हे राम कितनी गन्दी तरह से खाते हैं मन करता है इनकी थाली किसी अलग कोने में लगवा देते हैं , बेटे ने भी ऐसे सिर हिलाया जैसे पत्नी की बात से सहमत हो । उनका बेटा यह सब मासूमियत से देख रहा था ।<br />
.<br />
अगले दिन पिता की थाली उस टेबल से हटाकर एक कोने में लगवा दी गयी । पिता की डबडबाती आँखे सब कुछ देखते हुए भी कुछ बोल नहीं पा रहीं थी।<br />
.<br />
बूढ़ा पिता रोज की तरह खाना खाने लगा , खाना कभी इधर गिरता कभी उधर । छोटा बच्चा अपना खाना छोड़कर लगातार अपने दादा की तरफ देख रहा था ।<br />
.<br />
माँ ने पूछा क्या हुआ बेटे तुम दादा जी की तरफ क्या देख रहे हो और खाना क्यों नहीं खा रहे ।<br />
.<br />
बच्चा बड़ी मासूमियत से बोला – माँ मैं सीख रहा हूँ कि वृद्धों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, जब मैं बड़ा हो जाऊँगा और आप लोग बूढ़े हो जाओगे तो मैं भी आपको इसी तरह कोने में खाना खिलाया करूँगा ।<br />
.<br />
बच्चे के मुँह से ऐसा सुनते ही बेटे और बहु दोनों काँप उठे शायद बच्चे की बात उनके मन में बैठ गयी थी क्युकी बच्चा ने मासूमियत के साथ एक बहुत बढ़ा सबक दोनों लोगो को दिया था ।<br />
.<br />
बेटे ने जल्दी से आगे बढ़कर पिता को उठाया और वापस टेबल पे खाने के लिए बिठाया और बहु भी भाग कर पानी का गिलास लेकर आई कि पिताजी को कोई तकलीफ ना हो ।<br />
.<br />
तो मित्रों , माँ बाप इस दुनियाँ की सबसे बड़ी पूँजी हैं आप समाज में कितनी भी इज्जत कमा लें या कितना भी धन इकट्ठा कर लें लेकिन माँ बाप से बड़ा धन इस दुनिया में कोई नहीं है...</div>
Dharmendra Kumarhttp://www.blogger.com/profile/05446076950479072228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6782595479279314884.post-4413680934915320482017-06-25T06:35:00.000-07:002017-06-25T06:35:01.664-07:00कितना सत्य है ना?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कितना सत्य है ना…..?<br />
<br />
भक्ति जब भोजन में प्रवेश करती है,<br />
भोजन ” प्रसाद “बन जाता है.।<br />
💐💐<br />
भक्ति जब भूख में प्रवेश करती है,<br />
भूख ” व्रत ” बन जाती है.।<br />
💐💐<br />
भक्ति जब पानी में प्रवेश करती है,<br />
पानी ” चरणामृत ” बन जाता है.।<br />
💐💐<br />
भक्ति जब सफर में प्रवेश करती है,<br />
सफर ” तीर्थयात्रा ” बन जाता है.।<br />
🍁🍁<br />
भक्ति जब संगीत में प्रवेश करती है,<br />
संगीत ” कीर्तन ” बन जाता है.।<br />
🍁🍁<br />
भक्ति जब घर में प्रवेश करती है,<br />
घर ” मन्दिर ” बन जाता है.।<br />
🌸🌸<br />
भक्ति जब कार्य में प्रवेश करती है,<br />
कार्य ” कर्म ” बन जाता है.।<br />
🌸🌸<br />
भक्ति जब क्रिया में प्रवेश करती है,<br />
क्रिया “सेवा ” बन जाती है.। और…<br />
🌻🌻<br />
भक्ति जब व्यक्ति में प्रवेश करती है,<br />
व्यक्ति ” मानव ” बन जाता है..।</div>
Dharmendra Kumarhttp://www.blogger.com/profile/05446076950479072228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6782595479279314884.post-48422967748222797252017-06-25T06:33:00.002-07:002017-06-25T06:33:57.302-07:00प्रश्नोत्तर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
||||||||| प्रश्नोत्तर |||||||||<br />
<br />
Qus→ जीवन का उद्देश्य क्या है ?<br />
Ans→ जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है - जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है..!!<br />
📒<br />
Qus→ जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है ?<br />
Ans→ जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया - वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है..!!<br />
📒<br />
Qus→संसार में दुःख क्यों है ?<br />
Ans→लालच, स्वार्थ और भय ही संसार के दुःख का मुख्य कारण हैं..!!<br />
📒<br />
Qus→ ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की ?<br />
Ans→ ईश्वर ने संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की..!!<br />
📒<br />
Qus→ क्या ईश्वर है ? कौन है वे ? क्या रुप है उनका ? क्या वह स्त्री है या पुरुष ?<br />
Ans→ कारण के बिना कार्य नहीं। यह संसार उस कारण के अस्तित्व का प्रमाण है। तुम हो, इसलिए वे भी है - उस महान कारण को ही आध्यात्म में 'ईश्वर' कहा गया है। वह न स्त्री है और ना ही पुरुष..!!<br />
📒<br />
Qus→ भाग्य क्या है ?<br />
Ans→हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है तथा आज का प्रयत्न ही कल का भाग्य है..!!<br />
📒<br />
Qus→ इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ?<br />
Ans→ रोज़ हजारों-लाखों लोग मरते हैं और उसे सभी देखते भी हैं, फिर भी सभी को अनंत-काल तक जीते रहने की इच्छा होती है..<br />
इससे बड़ा आश्चर्य ओर क्या हो सकता है..!!<br />
📒<br />
Qus→किस चीज को गंवाकर मनुष्य<br />
धनी बनता है ?<br />
Ans→ लोभ..!!<br />
📒<br />
Qus→ कौन सा एकमात्र उपाय है जिससे जीवन सुखी हो जाता है?<br />
Ans → अच्छा स्वभाव ही सुखी होने का उपाय है..!!<br />
📒<br />
Qus → किस चीज़ के खो जाने<br />
पर दुःख नहीं होता ?<br />
Ans → क्रोध..!!<br />
📒<br />
Qus→ धर्म से बढ़कर संसार में और क्या है ?<br />
Ans → दया..!!<br />
📒<br />
Qus→क्या चीज़ दुसरो को नहीं देनी चाहिए ?<br />
Ans→ तकलीफें, धोखा..!!<br />
📒<br />
Qus→ क्या चीज़ है, जो दूसरों से कभी भी नहीं लेनी चाहिए ?<br />
Ans→ इज़्ज़त, किसी की हाय..!!<br />
📒<br />
Qus→ ऐसी चीज़ जो जीवों से सब कुछ करवा सकती है ?<br />
Ans→मज़बूरी..!!<br />
📒<br />
Qus→ दुनियां की अपराजित चीज़ ?<br />
Ans→ सत्य..!!<br />
📒<br />
Qus→ दुनियां में सबसे ज़्यादा बिकने वाली चीज़ ?<br />
Ans→ झूठ..!!<br />
📒<br />
Qus→ करने लायक सुकून का<br />
कार्य ?<br />
Ans→ परोपकार..!!<br />
📒<br />
Qus→ दुनियां की सबसे बुरी लत ?<br />
Ans→ मोह..!!<br />
📒<br />
Qus→ दुनियां का स्वर्णिम स्वप्न ?<br />
Ans→ जिंदगी..!!<br />
📒<br />
Qus→ दुनियां की अपरिवर्तनशील चीज़ ?<br />
Ans→ मौत..!!<br />
📒<br />
Qus→ ऐसी चीज़ जो स्वयं के भी समझ ना आये ?<br />
Ans→ अपनी मूर्खता..!!<br />
📒<br />
Qus→ दुनियां में कभी भी नष्ट/ नश्वर न होने वाली चीज़ ?<br />
Ans→ आत्मा और ज्ञान..!!<br />
📒<br />
Qus→ कभी न थमने वाली चीज़ ?<br />
Ans→ समय</div>
Dharmendra Kumarhttp://www.blogger.com/profile/05446076950479072228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6782595479279314884.post-61883993544598389102017-06-25T06:32:00.001-07:002017-06-25T06:32:43.494-07:00श्री राधा रहस्य<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ब्रज धाम में किसी राजा का नहीं बल्कि रानी का राज चलता है ! और ये रानी कोई और नहीं, हमारी प्यारी लाडली सरकार श्री राधा रानी जी हैं ! श्री राधा जी को श्रीकृष्ण की आत्मा कहा जाता है ! ये श्री वृषभानु जी और कीर्तिदा जी की पुत्री थीं। पद्म पुराण में श्री वृषभानु जी को राजा बताते हुए कहा गया है कि यह राजा जब यज्ञ की भूमि साफ कर रहे थे तब उन्हें भूमि कन्या के रूप में श्री राधा मिली !<br />
<br />
राजा ने उन्हें अपनी कन्या मानकर पालन पोषण किया। श्रीराधा जी के बारे में एक दूसरी कथा यह भी मिलती है कि भगवान श्रीविष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार लेते समय सभी देवताओं से पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए कहा तो भगवान विष्णु की अर्धांगिनी माँ लक्ष्मी, राधा जी बनकर पृथ्वी पर आईं।<br />
<br />
श्री राधा जी के महात्म वर्णित स्तुति है,<br />
<br />
<br />
<br />
त्वं माता कृष्ण प्राणाधिका देवी<br />
कृष्ण प्रेममयी शक्ति शुभे,<br />
पूजितासी मया सा च या श्री कृष्णेन पूजिता,<br />
कृष्ण भक्ति प्रदे राधे नमस्ते मंगल प्रदे !<br />
<br />
अर्थात – हे श्री राधा, आप श्री कृष्ण के प्राण (अधिष्ठात्री देवी) हैं तथा आप ही श्री कृष्ण की प्रेममयी शक्ति तथा शोभा हैं ! श्री कृष्ण भी जिनकी पूजा करते हैं वे देवी मेरी पूजा स्वीकार करें ! हे देवी राधा, मुझे कृष्ण भक्ति प्रदान करें मेरा नमन स्वीकार करें तथा मेरा मंगल करें !<br />
<br />
<br />
<br />
हे दीनबन्धो दिनेश सर्वेश्वर नमोस्तुते,<br />
गोपेश गोपिका कांत राधा कांता नमोस्तुते !<br />
<br />
अर्थात – हे दीनबंधो, दिनेश, सब ईश्वरों के ईश्वर, प्रभु मेरा नमन, मेरी स्तुति स्वीकार करें ! आप गोपिओं के ईश्वर एवं प्राणनाथ हैं तथा श्री राधा जी आपकी प्राण (अधिष्ठात्री देवी) हैं ! प्रभु मेरा नमन मेरी स्तुति स्वीकार करें !<br />
<div>
<br /></div>
</div>
Dharmendra Kumarhttp://www.blogger.com/profile/05446076950479072228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6782595479279314884.post-24316021126776657672017-06-25T06:27:00.004-07:002017-06-25T06:27:56.806-07:00**** *अनमोल वचन *****<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<b>"लोग समझते हैं,कि "नरम दिल" वाले बेवकूफ होते हैं,,,!</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>"जबकि सच्चाई यह है,कि "नरम दिल" वाले बेवकूफ नही होते,,,!</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>"वे बखूबी ये जानते हैं,कि लोग उनके साथ क्या कर रहे हैं,,,!</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>"पर हर बार लोगों को माफ करना,,,!</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>"यह जाहिर करता है,कि वो एक खूबसूरत “दिल” के मालिक हैं,,,!</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>"और,वे “रिश्तों” को सँभालना बखूबी जानते हैं,,,!</b></div>
<br />
<div style="text-align: center;">
<b>" इंसान तो हर घर मे जन्म लेता हैं,,,!</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>" बस इंसानियत् कहीं-कहीं ही जन्म लेती हैं,,,! </b></div>
<br />
<a name='more'></a><br />
<div style="text-align: center;">
<b> परिवार के साथ धैर्य</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b> प्यार कहलाता है,</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: center;">
<b> औरों के साथ धैर्य </b></div>
<div style="text-align: center;">
<b> सम्मान कहलाता है,</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: center;">
<b> स्वयं के साथ धैर्य </b></div>
<div style="text-align: center;">
<b> आत्मविश्वास कहलाता है,</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b> और</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b> भगवान के साथ धैर्य </b></div>
<div style="text-align: center;">
<b> आस्था कहलाती है!</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: center;">
<b> इंसान की आर्थिक स्थिति</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b> कितनी भी अच्छी हो,</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b> लेकिन </b></div>
<div style="text-align: center;">
<b> जीवन का सही आनंद लेने के लिए</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>उसके मन की स्थिति अच्छी होनी चाहिए।</b></div>
</div>
Dharmendra Kumarhttp://www.blogger.com/profile/05446076950479072228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6782595479279314884.post-39395659786285408622017-06-25T06:25:00.002-07:002017-06-25T06:25:14.265-07:00सीता के वनवास का रहस्य।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
एक बार सीता अपनी सखियों के साथ मनोरंजन के लिए महल के बाग में गईं. उन्हें पेड़ पर बैठे तोते का एक जोड़ा दिखा.</div>
<div style="text-align: justify;">
दोनों तोते आपस में सीता के बारे में बात कर रहे थे. एक ने कहा-अयोध्या में एक सुंदर और प्रतापी कुमार हैं जिनका नाम श्रीराम है. उनसे जानकी का विवाह होगा.श्रीराम ग्यारह हजार वर्षों तक इस धरती पर शासन करेंगे. सीता-राम एक दूसरे केजीवनसाथी की तरह इस धरती पर सुख से जीवन बिताएंगे.</div>
<div style="text-align: justify;">
सीता ने अपना नाम सुना तो दोनों पक्षी की बात गौर से सुनने लगीं. उन्हें अपने जीवन के बारे में और बातें सुनने की इच्छा हुई. सखियों से कहकर उन्होंने दोनों पक्षी पकड़वा लिए. सीता ने उन्हें प्यार से पुचकारा और कहा- डरो मत. तुम बड़ी अच्छी बातें करते हो. यह बताओ ये ज्ञान तुम्हें कहां से मिला. मुझसे भयभीत होने की जरूरत नहीं. </div>
<div style="text-align: justify;">
दोनों का डर समाप्त हुआ. वे समझ गए कि यह स्वयं सीता हैं. दोनों ने बताया कि वाल्मिकी नाम के एक महर्षि हैं. वे उनके आश्रम में ही रहते हैं. वाल्मिकी रोज राम-सीता जीवन की चर्चा करते हैं. वे यह सब सुना करते हैं और सब </div>
<div style="text-align: justify;">
कंठस्थ हो गया है.</div>
<div style="text-align: justify;">
सीता ने और पूछा तो शुक ने कहा- दशरथ पुत्र राम शिव का धनुष भंग करेंगे और सीता उन्हें पति के रूप में स्वीकार करेंगी. तीनों लोकों में यह अद्भुत जोड़ी बनेगी.सीता पूछती जातीं और शुक उसका उत्तर देते जाते. दोनों थक गए. उन्होंने सीता से कहा यह कथा बहुत विस्तृत है. कई माह लगेंगे सुनाने में. यह कह कर दोनों उड़ने को तैयार हुए.</div>
<div style="text-align: justify;">
सीता ने कहा- तुमने मेरे भावी पति के बारे में बताया है. उनके बारे में बड़ी </div>
<div style="text-align: justify;">
जिज्ञासा हुई है. जब तक श्रीराम आकर मेरा वरण नहीं करते मेरे महल में तुम आराम से रहकर सुख भोगो.</div>
<div style="text-align: justify;">
शुकी ने कहा- देवी हम वन के प्राणी है. पेडों पर रहते सर्वत्र विचरते हैं. मैं </div>
<div style="text-align: justify;">
गर्भवती हूं. मुझे घोसले में जाकर अपने बच्चों को जन्म देना है.</div>
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सीताजी नहीं मानी. शुक ने कहा- आप जिद न करें. जब मेरी पत्नी बच्चों को जन्म दे देगी तो मैं स्वयं आकर शेष कथा सुनाउंगा. अभी तो हमें जाने दें.</div>
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सीता ने कहा- ऐसा है तो तुम चले जाओ लेकिन तुम्हारी पत्नी यहीं रहेगी. मैं इसे कष्ट न होने दूंगी. शुक को पत्नी से बड़ा प्रेम था. वह अकेला जाने को तैयार न था. शुकी भी अपने पति से वियोग सहन नहीं कर सकती थी . उसने सीता को कहा- आप मुझे पति से अलग न करें. मैं आपको शाप दे दूंगी.</div>
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सीता हंसने लगीं. उन्होंने कहा- शाप देना है तो दे दो. राजकुमारी को पक्षी के शाप से क्या बिगड़ेगा.शुकी ने शाप दिया- एक गर्भवती को जिस तरह तुम उसके पति से दूर कर रही हो उसी तरह तुम जब गर्भवती रहोगी तो तुम्हें पति का बिछोह सहना पड़ेगा. शाप देकर शुकी ने प्राण त्याग दिए.</div>
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पत्नी को मरता देख शुक क्रोध में बोला- अपनी पत्नी के वचन सत्य करने के लिए मैं ईश्वर को प्रसन्न कर श्रीराम के नगर में जन्म लूंगा और अपनी पत्नी का शाप सत्य कराने का माध्यम बनूंगा.</div>
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वही शुक(तोता) अयोध्या का धोबी बना जिसने झूठा लांछन लगाकर श्रीराम को इस बात के लिए विवश किया कि वह सीता को अपने महल से निष्काषित कर दें.</div>
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Dharmendra Kumarhttp://www.blogger.com/profile/05446076950479072228noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6782595479279314884.post-23537338200477139702017-06-25T06:20:00.000-07:002017-06-25T06:20:55.342-07:00डूबते हुए जहाज<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक प्रोफेसर अपनी क्लास में कहानी सुना रहे थे, जोकि इस प्रकार है –<br />
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एक बार समुद्र के बीच में एक बड़े जहाज पर बड़ी दुर्घटना हो गयी. कप्तान ने शिप खाली करने का आदेश दिया. जहाज पर एक युवा दम्पति थे. जब लाइफबोट पर चढ़ने का उनका नम्बर आया तो देखा गया नाव पर केवल एक व्यक्ति के लिए ही जगह है. इस मौके पर आदमी ने औरत को धक्का दिया और नाव पर कूद गया.<br />
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डूबते हुए जहाज पर खड़ी औरत ने जाते हुए अपने पति से चिल्लाकर एक वाक्य कहा.<br />
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अब प्रोफेसर ने रुककर स्टूडेंट्स से पूछा – तुम लोगों को क्या लगता है, उस स्त्री ने अपने पति से क्या कहा होगा ?<br />
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ज्यादातर विद्यार्थी फ़ौरन चिल्लाये – स्त्री ने कहा – मैं तुमसे नफरत करती हूँ ! I hate you !<br />
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प्रोफेसर ने देखा एक स्टूडेंट एकदम शांत बैठा हुआ था, प्रोफेसर ने उससे पूछा कि तुम बताओ तुम्हे क्या लगता है ?<br />
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वो लड़का बोला – मुझे लगता है, औरत ने कहा होगा – हमारे बच्चे का ख्याल रखना !<br />
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प्रोफेसर को आश्चर्य हुआ, उन्होंने लडके से पूछा – क्या तुमने यह कहानी पहले सुन रखी थी ?<br />
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लड़का बोला- जी नहीं, लेकिन यही बात बीमारी से मरती हुई मेरी माँ ने मेरे पिता से कही थी.<br />
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प्रोफेसर ने दुखपूर्वक कहा – तुम्हारा उत्तर सही है !<br />
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प्रोफेसर ने कहानी आगे बढ़ाई – जहाज डूब गया, स्त्री मर गयी, पति किनारे पहुंचा और उसने अपना बाकि जीवन अपनी एकमात्र पुत्री के समुचित लालन-पालन में लगा दिया. कई सालों बाद जब वो व्यक्ति मर गया तो एक दिन सफाई करते हुए उसकी लड़की को अपने पिता की एक डायरी मिली. डायरी से उसे पता चला कि जिस समय उसके माता-पिता उस जहाज पर सफर कर रहे थे तो उसकी माँ एक जानलेवा बीमारी से ग्रस्त थी और उनके जीवन के कुछ दिन ही शेष थे.<br />
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ऐसे कठिन मौके पर उसके पिता ने एक कड़ा निर्णय लिया और लाइफबोट पर कूद गया. उसके पिता ने डायरी में लिखा था – तुम्हारे बिना मेरे जीवन को कोई मतलब नहीं, मैं तो तुम्हारे साथ ही समंदर में समा जाना चाहता था. लेकिन अपनी संतान का ख्याल आने पर मुझे तुमको अकेले छोड़कर जाना पड़ा.<br />
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जब प्रोफेसर ने कहानी समाप्त की तो, पूरी क्लास में शांति थी.<br />
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इस संसार में कईयों सही गलत बातें हैं लेकिन उसके अतिरिक्त भी कई जटिलतायें हैं, जिन्हें समझना आसान नहीं. इसीलिए ऊपरी सतह से देखकर बिना गहराई को जाने-समझे हर परिस्थिति का एकदम सही आकलन नहीं किया जा सकता.<br />
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– कलह होने पर जो पहले माफ़ी मांगे, जरुरी नहीं उसी की गलती हो. हो सकता है वो रिश्ते को बनाये रखना ज्यादा महत्वपूर्ण समझता हो.<br />
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– दोस्तों के साथ खाते-पीते, पार्टी करते समय जो दोस्त बिल पे करता है, जरुरी नहीं उसकी जेब नोटों से ठसाठस भरी हो. हो सकता है उसके लिए दोस्ती के सामने पैसों की अहमियत कम हो.<br />
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– जो लोग आपकी मदद करते हैं, जरुरी नहीं वो आपके एहसानों के बोझ तले दबे हों. वो आपकी मदद करते हैं क्योंकि उनके दिलों में दयालुता और करुणा का निवास है.<br />
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आजकल जीवन कठिन इसीलिए हो गया है क्योंकि हमने लोगो को समझना कम कर दिया और फौरी तौर पर judge करना शुरू कर दिया है. थोड़ी सी समझ और थोड़ी सी मानवता ही आपको सही रास्ता दिखा सकती है. जीवन में निर्णय लेने के कई ऐसे पल आयेंगे, सो अगली बार किसी पर भी अपने पूर्वाग्रह का ठप्पा लगाने से पहले विचार अवश्य करें...</div>
Dharmendra Kumarhttp://www.blogger.com/profile/05446076950479072228noreply@blogger.com0